Shaba

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वो सफर


#प्रतियोगिता हेतु

दिनाॅ॑क - 6/12/21


                          वो सफर


"क्या है? मैं नहीं जा रहा! तू जा और तीनों की टिकट ला।" निखिल ने झुंझलाते हुए कहा।

"पर मुझे नहीं आता ये सब! जा ना भाई, तू ही ला दे। देख कितनी लंबी लाइन है।" सुगंधा ने गिड़गिड़ाते हुए कहा।

"अबे! इधर नहीं उधर देख! लेडीज विंडो! वहाॅ॑ जाकर ले।" निखिल ने सुगंधा का चेहरा दूसरी तरफ मोड़ते हुए कहा।

"कौन सी? वो वाली!" सुगंधा ने औरतों की लाईन की तरफ उंगली से इशारा करते हुए कहा।

"हाॅ॑, मेरी माॅ॑! औरतें वहाॅ॑ से लेती हैं टिकट। अब जा जल्दी!" निखिल ने उसे धकियाते हुए कहा।

"हाॅ॑, हाॅ॑! जा रही हूॅ॑।"

थोड़ी ही देर में सुगंधा तीन टिकट लेकर आ गई।

"अरे वाह! ये तो कोई मुश्किल काम नहीं है।" सुगंधा ने उत्साहित होकर कहा।

निखिल ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए अपना सिर हिलाया। सुगंधा, नमिता और निखिल भाई-बहन थे। सुगंधा और निकिता पहली बार अपने माता-पिता के बिना लंबी यात्रा पर निकले थे। वे दोनों b.ed के लिए अपने पैतृक स्थान से 6 घंटे की यात्रा करके अपने गंतव्य तक पहुॅ॑चने वाले थे। उन दोनों को इस तरह की यात्रा का बिल्कुल भी अनुभव नहीं था। दरअसल उन दोनों बहनों ने अभी तक की अपनी शिक्षा घर में रहकर ही प्राप्त की थी, इसलिए बाहरी दुनिया से उनका वास्ता कभी पड़ा नहीं था। जब घर में निकिता ने भी. एड. करने की इच्छा व्यक्त की, तो घर वालों ने मना कर दिया। उस समय उनके भाई निखिल ने उसका साथ दिया। वो चाहता था कि उसकी बहन भी घर की चार दीवारी से बाहर निकले और खुद को मजबूत बनाए। मगर घर वाले लड़की को अकेले बाहर भेजना नहीं चाहते थे, इसलिए निखिल के समझाने पर दोनों बहनों को एक साथ बाहर भेजने का निर्णय लिया गया। दोनों बहनों ने पहले ही प्री-बीएड की परीक्षा पास कर ली थी, पर काउंसिलिंग के समय उन्हें घर से इतनी ज्यादा दूर का काॅलेज अलाॅट हुआ, जिसके कारण उनका बी.एड. करना ठंडे बस्ते में जा ही रहा था कि निखिल की कोशिशों ने एक बार फिर नई उम्मीद जगाई।

उनके पिता अपनी अति व्यस्तता की वजह से उन्हें छोड़ने नहीं जा सकते थे, इसलिए इसका जिम्मा भी निखिल ने ही उठाया। इसी समय रेल्वे स्टेशन में टिकट लाने को लेकर यह घटनाक्रम हुआ। निखिल को रेल की यात्रा का अनुभव था, क्योंकि लड़कों को अकेले कहीं भी जाने पर पाबंदी नहीं होती है। निखिल स्टेशन पर बैठे हुए दोनों बहनों को सारी जानकारी देने लगा कि किस प्रकार से उलझन की स्थिति में हम इंक्वायरी विंडो पर जाकर अपनी ट्रेन के प्लेटफार्म का पता कर सकते हैं और फिर पहले से वहाॅ॑ पहुॅ॑चकर आराम से ट्रेन का इंतजार कर सकते हैं। 

इस बार भी सुगंधा ही पूछताछ खिड़की पर सारी जानकारी लेकर आई और फिर वो सब प्लेटफार्म नंबर 4 की ओर चल दिए। थोड़ी ही देर में ट्रेन आई। निखिल उन दोनों के साथ ट्रेन में चढ़ा और सीट ढूंढकर वे तीनों आराम से बैठ गए।

"भाई! मुझे प्यास लगी है।" चार घंटे की यात्रा के बाद निकिता ने निखिल से कहा।

"निखिल ने बाहर झांककर देखा। कोई स्टेशन आने वाला था। वह अपनी जगह से उठा और निकिता को भी अपने साथ चलने के लिए कहा। मगर ट्रेन छुटने के डर की वजह से निकिता ने जाने से मना कर दिया। कुछ सोचकर निखिल ट्रेन से उतरा और फिर पानी लेने गया। कुछ देर बाद वह पानी लेकर लौटा और उसे सुगंधा को दिया।

"ये लो! मैं जरा आता हूॅ॑।" 

"अभी कहाॅ॑ जा रहे हो? ट्रेन छूटने वाली है।" सुगंधा ने उसका प्रतिरोध किया।

"अरे! आ रहा हूॅ॑ ना यार!" 

"ठीक है जा पर समय से आ जाना!"

निखिल एक बार फिर उसे देख कर मुस्कुराया और फिर ट्रेन से उतर गया। सुगंधा और निकिता उसका इंतजार करते रहे। थोड़ी देर में ट्रेन से सीटी दी और वह धीरे धीरे पटरी पर आगे बढ़ने लगी। मगर निखिल का दूर-दूर तक कोई भी नामोनिशान नहीं था। अब सुगंधा और निकिता को घबराहट होने लगी थी। सुगंधा ने जल्दी से निखिल को फोन लगाया। मगर पता नहीं क्यों वह फोन नहीं उठा रहा था। दोनों बहनों की घबराहट बढ़ती जा रही थी। धीरे-धीरे ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली। अब तो दोनों बहनों की ऑ॑खों से ऑ॑सू बहने लगे। वे दोनों लाचार नजरों से चारों ओर देखने लगी। 

"अब क्या करें दीदी?" निकिता ने रूआंसी होते हुए कहा।

"क्या पता यार? मगर एक बात सुन! डरना मत!" सुगंधा ने उसे हौसला देते हुए कहा।

अभी वो ये कह ही रही थी कि उसका फोन बजा। उसने फोन उठाकर देखा। निखिल की काॅल थी। उसने तेजी से कॉल उठाई।

"कहाॅ॑ है तू? पता है, हम दोनों का बुरा हाल हो गया है घबराहट में!"

"वो...!"

"वो क्या?"

"ट्रेन छूट गई मेरी!"

"क्या ऽऽऽऽ!!"

श्श्श्श्!! शांत रहो! घबरा कर क्या होगा? इस तरह तुम दोनों अकेली रहोगी। अब घर की चार दिवारी से बाहर निकली हो, तो थोड़ी आत्मनिर्भर भी बनो। टिकट संभाल कर रखो और ज्यादा किसी से बात नहीं करना। किसी से खाने का कोई सामान ना लेना। हिम्मत से काम लेना। याद रखना तुम दोनों अकेले नहीं हो। एक दूसरे के साथ हो। स्वभाविक बने रहना। दूसरी ट्रेन पकड़कर पीछे-पीछे आता हूॅ॑।" निखिल ने उसे समझाते हुए कहा।

सहमी हुए सुगंधा ने चुपचाप अपना सिर हिलाया। परिस्थिति को समझते हुए उसने समझदारी से काम लेने का फैसला किया। उसने गहरी साॅ॑स ली और कॉन्फिडेंस के साथ अपनी सीट पर बैठ गई। अपने डर और घबराहट को दूर करने के लिए उन दोनों ने आपस में बातें करनी शुरू कर दी। धीरे-धीरे सफर कटता रहा और उन दोनों को ये अहसास होने लगा कि इस तरह यात्रा करना कोई बहुत बड़ी और मुश्किल बात नहीं है। धीरे-धीरे वे दोनों नाॅर्मल होने लगे। दो घंटे के बाद जब उनका स्टेशन आने वाला था, तब एक बार फिर निखिल का फोन आया। सुगंधा ने तेजी से फोन उठाया।

"कहाॅ॑ है तू? हम तो पहुॅ॑च गए। तू कब तक पहुॅ॑चेगा?"

"बस दो मिनट में!"

"क्या!"

"हाॅ॑, पीछे देख!"

भौंचक्की सी सुगंधा ने तेजी से पीछे मुड़कर देखा। कुछ ही दूरी पर मुस्कुराता हुआ निखिल खड़ा था। उसे देखते ही सुगंधा और निकिता दोनों ने एक ठंडी साॅ॑स छोड़ी। जल्दी ही निखिल उनके पास पहुॅ॑च गया।

"और कैसा रहा सब!" निखिल ने शरारत से पूछा।

उसे उस तरह मुस्कुराता हुआ देखकर सुगंधा का माथा ठनका। उसने निखिल को घूर कर देखा।

"मतलब कोई ट्रेन नहीं छूटी थी तेरी!"

"अरे वाह! तू तो दो घंटे में ही समझदार हो गई।" उसने हॅ॑सते हुए कहा।

उसकी बात सुनते ही गुस्से से सुगंधा के जबड़े भिंच गए और उसने निखिल को तड़ातड़ मारना शुरू कर दिया।

"यहाॅ॑ क्यों मार रही है मेरी माॅ॑?" उसने खुद को बचाते हुए कहा।

"जानबूझ कर किया तूने! जानबूझकर! तुझे पता है हम दोनों कितना डर गए थे। अगर कुछ हो जाता तो!" सुगंधा ने शिकायती लहजे में कहा।

"तो मैं था ना पीछे! पर हमेशा नहीं रहूॅ॑गा। तुम्हें अपना काम खुद करना आना चाहिए। अब जिंदगी में आगे बढ़ने का फैसला किया है, तो इसके सफर से परिचित हो जाना ही बेहतर है। तुम हर समय दूसरों पर आश्रित रहकर आत्मनिर्भर नहीं बन सकती, इसलिए जिंदगी जब भी कुछ सीखने का मौका दें तो उस मौके को जाने ना दो। तभी तो जिंदगी का सफर आसानी से काट पाओगी।" निखिल ने दोनों बहनों को मुस्कराकर देखते हुए कहा।

उसकी बात सुनकर और समझकर सुगंधा और निकिता भी मुस्कुरा दीं। सही बात तो है, सभी को अपना सफर खुद ही तय करना पड़ता है और इस सफर ने उसकी एक झलक दिखला दी थी। स्टेशन आने वाला था। निखिल ने सबका सामान उठाना चाहा, पर सुगंधा ने रोक दिया और दोनों बहनों ने अपना सामान खुद ही उठा लिया। वे तीनों ट्रेन से नीचे उतरे और अपने गंतव्य की ओर बढ़ गए। यह सफर जीवन के हर मोड़ पर उन तीनों की महत्वपूर्ण याद बन गया था।
(सच्ची घटना पर आधारित।)

समाप्त


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8 Comments

ये सही तरीका है सीख देने का। कई बार स्थितियों का वास्तविक अनुभव होने के बाद ही उसका सामना करने की हिम्मत मिलती है।

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Shrishti pandey

07-Dec-2021 11:17 PM

Nice

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Gunjan Kamal

07-Dec-2021 02:59 PM

शानदार प्रस्तुति 👌👌

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Shaba

07-Dec-2021 06:29 PM

आभार आपका

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